भव सागर से पार, अर्थात मुक्ति को प्राप्त करना कौन नहीं चाहता, मुझे तो ईश्वर प्राप्ति इस मनुष्य जन्म का एकमात्र उद्देश्य समझ में आता है। मनुष्य का जन्म मिला, अथवा थोड़ा और गहराई में जायेंगे तो समझ में आयेगा कि यह प्राणी रूप में हमारा अस्तित्व ही ईश्वर प्राप्ति मात्र के लिए है, किन्तु शेष जन्मों में बुद्धि एवं विवेक के आभाव में प्राणी समस्त जन्मों का महत्व नहीं समझ पाता ।

यह मनुष्य मात्र का जन्म ही है, जिसमें हम इस जीवन का उद्देश्य एवं महत्व समझ सकते हैं। ईश्वर तक पहुँच सकते हैं। किन्तु मन एवं देह के अभिमान में, अपने विकारों एवं दिशाहीनता के कारण अधिकांश लोग अपने सही मार्ग पर नहीं चल पाते, इस संसार के चक्र में फंसकर अपने मूल उद्देश्य तक, पहुँच मार्ग पर नहीं चल पाते। हाँ यह बात अलग है, जिन्हें ईश्वर अपने पास बुलाना चाहते हैं। उनका मन, उनकी दिशा एवं उनकी दृष्टि सब  अपनी और केंद्रित कर देता है। मनुष्य के कर्मफल भी इसमें योगदान देते हैं, तो वहीं मनुष्य की इच्छाशक्ति भी प्राणी को अपनी मुक्ति के मार्ग पर चलते हेतु अपना योगदान देने लगती है ।

किन्तु गहरे अनुभव एवं व्यवहारिकता के स्तर पर देखा जाये तो, इन सभी बातों हमने जितनी आसान सरल भाषा में हमने बताया असल में वे इतनी सरल हैं नहीं। इसलिए इन बातों की गहराई को समझने की आवश्यकता है।

हम सभी जानते हैं, सनातन धर्म में ईश्वर प्राप्ति के मुख्य चार मार्ग हैं:

  1. भक्ति मार्ग : भगवान के प्रति प्रेम और भक्ति के माध्यम से ईश्वर प्राप्ति का मार्ग।
  2. ज्ञान मार्ग : ज्ञान और विचार के माध्यम से ईश्वर की प्राप्ति का मार्ग।
  3. कर्म मार्ग : निस्वार्थ भाव से कर्म करने के माध्यम से ईश्वर प्राप्ति का मार्ग।
  4. राज योग मार्ग : योग और ध्यान के माध्यम से ईश्वर प्राप्ति का मार्ग।

इसके अतिरिक्त, सनातन धर्म में अन्य 3 और मार्ग भी हैं, जैसे कि:

– तंत्र मार्ग : तंत्र साधना के माध्यम से ईश्वर प्राप्ति का मार्ग।

– सहज योग मार्ग : सहज योग के माध्यम से ईश्वर प्राप्ति का मार्ग।

– नाम सिमरण मार्ग : भगवान के नाम का सिमरण करने के माध्यम से ईश्वर प्राप्ति का मार्ग।

इन मार्गों का उद्देश्य व्यक्ति को ईश्वर के साथ एकता की अनुभूति कराना और आत्म-साक्षात्कार की प्राप्ति करना है।

किन्तु आज मैं अपने आत्मनुभव से एक मार्ग, अत्यंत प्रबल मार्ग का द्वार खोल रहा हूँ, वह है “भाव मार्ग” यह नाम स्मरण मार्ग का मूल आधार मात्र है, किन्तु यह मार्ग दृष्टा भाव से देखने, महसूस करने, आत्मसात करने से भी इसपर चला जा सकता है, यह उन अनुगामियों के लिए है, जो लोग लोकाचार से परे, गहरे अंतर्मन में अपनी यात्रा करना चाहते हैं, लोक दिखावा एवं अन्य औपचारिकताओं से परे, शुद्ध भाव की सिद्धि को हम “भाव मार्ग” कह रहे हैं I यह मार्ग ऐसे तो सभी मार्गों की धुरी है किन्तु इस धुरी की बात सब करते हैं किन्तु इसपर अडिग होकर चलना, और लंबे समय तक चलना अत्यंत कठिन है, किंतु इसे कितनी सरलता से आत्मसात किया जा सकता है अब हमारा जीवन उसी के लिए समर्पित रहेगा I लोगों को भाव मार्ग पर ले जाकर, ईश्वर के श्री चरणों का सानिध्य जल्द से जल्द मिल जाए, सब भाव मार्ग के पथिक एक साथ चलें, ब्रह्म के मार्ग पर चलें, सबका भला करते हुए चलें l

हमारी आंतरिक शुचिता, एकाग्रता, शुद्धता, संकल्प, भक्ति, श्रद्धा, आत्मादेश, आत्मिक संवेदनाओं के सामुच्य हो आपने भाव मनोभाव हैं। हमारे जितने भी मार्ग हैं’ उन सभी के कठोरतम यम-नियम बताये गये है। जिनका अनुकरण करना सिद्धि प्राप्ति हेतु अत्यन्त आवश्यक है। हम सभी के लिए हमारे वेदों, उपनिषदों एवं समस्त ग्रंथों में कही गई बातों में प्रभु प्राप्ति के तय मार्गों के भी केन्द्र में “भाव” ही हैं। जब तक आपके भाव अपने ईष्ट के प्रति एकाकार नहीं तब तक आप  सही अर्थों में अपने मार्ग में पुष्ट नहीं हो सकते अर्थात “भाव” ही  आधार है I  यह सभी विधियों का आधार है, इसी लिए इस युग के लिए “भाव मार्ग” ही श्रेष्ठतम मार्ग है। जिस पर चलकर हम अपने प्रभु को प्राप्त कर सकते हैं। अपनी मुम्ति सुनिश्चित कर सकते। इसलिए भाव मार्ग” का सूत्रपात मेरे माध्यम से ईश्वर परमपिता परमात्मा ने करवाया है। स्मरण रहें, कि मैं निमित्त मात्र है। मुझे अनुभव के स्तर पर अध्ययन के स्तर पर, भक्ति की शक्ति के स्तर पर भाव मार्ग ही मुक्ति हेतु सर्व सुलभ एवं सार्थक मार्ग प्रतीत होता है I

वर्तमान की जीवन शैली के अनुरूप भी हम भाव मार्ग पर चल कर ही मुक्ति को प्राप्त कर सकते हैं। चाहे अपना ईष्ट हम किसी को भी मानते हैं। आज के युग में सभी को सरलतम मार्ग चाहिए, सर्व सुलभ और व्यवहारिक पद्धति चाहिए, इसलिए भी “भाव मार्ग” हमें भानवीय मूल्यों उत्कृष्ठ शिखर तक पहुंचाने में सर्वोत्तम पद्धति है । हमारे सभी ईष्ट, परमपिता परमात्मा, माँ परमेश्वरी सभी को आपके भाव से मतलब है I उन्हें सभी कुछ प्रिय है, जो भाव से किया जाये, जप-तप, कर्मकांड, पूजन विधि, हवन-पूजा, आपका दैनिक जप, पूजा, व्रत अनुष्ठान  प्रभु को समर्पित उनके दिवसों पर विधि विधान से किये गए सभी कार्य, आपके मन, वचन और शरीर द्वारा किये गए कर्म सभी के अनुसार आप, विभिन्न विधियों से अपनी समर्पित भक्ति कर सकते हैं, किन्तु इनमें यदि भाव नहीं तो वह निर्थक हैं I अतः जब भाव ही मूल में है तो पहले भाव पर ही कार्य किया जाये, और हमने किया भी उसके परिणाम भी भावानुकूल ही रहे, अतः वहीं से यह भाव उत्पन्न हुआ है, कि इसी मार्ग पर चलकर लोग हरी चरणों तक सुगमता से पहुँच सकते हैं I

हम जिस भावना से प्रभु को स्मरण करते हैं, हमें उसी अनुसार ही प्रभु कृपा की प्राप्ति होती है। आपकी सामान्य सी दिखने वाली क्रिया भी, यदि उसमें भाव की प्रधानता है तो वह आपको मुक्त बना सकती है I साथ ही उत्तम से उत्तम कर्म एवं क्रिया भी निकृष्ट श्रेणी का भाव होने पर नरक का भागी बना सकती है I हमारी सामान्य श्रेणी की क्रिया अगर कर्तव्य समझकर निष्काम प्रेमभाव से की जाएं, परमपिता का भावपूर्ण ध्यान सतत आपके अंतकरण में वास करे तो परमात्मा की प्राप्ति मार्ग प्रसस्त करेगा । इसका अर्थ है भाव ही प्रधान है, क्रिया नहीं। इसलिए हम जो भी कार्य करें, उत्तम भाव से करें।

माता शबरी के जीवन का सन्देश भी यही है, एवं श्री गणेश जी द्वारा अपने माता पिता की परिक्रमा करने के पीछे भी हमें यही सन्देश मिलता है I अनेकों संत महात्माओं का जीवंत उदाहरण हमने सुने हैं I अनेकों महापुरुषों के जीवन से हमें भावपूर्ण मार्ग पर चलकर अपने उद्दात्त मार्ग पर चला जा सकता है I

लेखक

(प्रमोद कुमार)

सामाजिक कार्यकर्ता

नई दिल्ली

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