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हमारा देश गहरी धार्मिक मान्यताओं, सांस्कृतिक और परंपरागत जीवनशैली सुसंपन्न राष्ट्र है I  “वसुधैव कुटुम्बकम” की अवधारणा पर चलने वाला विवधता में एकता के लिये जाना जाने वाला देश  है I हमारी समृद्ध ऐतिहासिक विरासत को समेटे हुए, विश्व गुरु सम्पूर्ण मानवता को, इस सृष्टि की अगुवाई कर चुका है I

हम सभी विचार करते होंगे कि इतना समृद्ध और शक्तिशाली देश होने के बावजूद भी आज अनेकों क्षेत्रों में क्यों पिछड़ा हुआ है, विश्व में कई मामलों में हमारी छवि उतनी बेहतर नहीं है, जितनी होनी चाहिए ! आखिर ऐसा क्यों ? इसके क्या कारण हैं ?

इसका बहुत बड़ा कारण है, हमारे देश की परतंत्रता का कालखंड में हमारी बदली हुई मानसिकता, हमारे समाज की और यहाँ रहने वाले मनुष्य मात्र की बदली सोच ! व्यवस्थाओं ने अपने ऊपर नागरिक को इतना आश्रित कर लिया की मनुष्य उन्ही पर निर्भर हो गया साथ ही व्यवस्थाओं द्वारा बने नियम कानूनों को समझने की बजाय, वह व्यवस्था के खिलाफ अपने अधिकारों को मांगने को ही अपनी जागरूकता समझता है I

जैसा कि हम जानते हैं, देश की वृद्धि एवं विकास के लिये सभी व्यक्ति व्यक्तिगत रुप से जिम्मेदार हैं। सभी को अपने मौलिक कर्त्तव्यों के बारे में जानकारी रखनी चाहिये और उन्हें नजरअंदाज किये बिना अनुकरण करना चाहिये। देश के अच्छे और जिम्मेदार नागरिक होने के कारण, सभी को अपने कर्त्तव्य वफादारी से निभाने चाहिये जैसे:

  • लोगों को सरकार के बनाये हुये सभी नियमों और कानूनों का पालन करना चाहिये। उन्हें प्राधिकरणों का आदर करना चाहिये और कोई नियम नहीं तोड़ना चाहिये साथ ही साथ दूसरों को भी ऐसा करने के लिये प्रेरित करना चाहिये।
  • उन्हें अपने खिलाफ किसी भी अपराध को सहन नहीं करना चाहिये और भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठानी चाहिये। उन्हें समाज को नकारात्मक प्रभाव से बचाते हुये अपने सभी नागरिक और सामाजिक कर्त्तव्यों का पालन करना चाहिए।
  • उन्हें जरुरतमंद लोगों के लिये समाधान उपलब्ध कराने चाहिये, बुद्धिमत्ता पूर्ण मतदान करना चाहिये और अपने सभी करों का भुगतान समय पर करना चाहियें।
  • उन्हें समाज के हित के लिये आर.टी.आई. और आर.टी.ई. जैसे अधिनियमों की मदद लेनी चाहिये।
  • सभी को अपने चारों ओर साफ-सफाई रखने के लिये स्वच्छता अभियान में भाग लेना चाहिये। उन्हें बच्चों को बेकार वस्तुओं को कूड़ेदान में डालना और सार्वजनिक वस्तुओं की देखभाल करना सिखाना चाहिये।
  • वो लोग जो समर्थ हैं उन्हें गैस के अनुदान (सब्सिडी) को छोड़ देना चाहिये।
  • सभी को देश और संगी नागरिकों के प्रति ईमानदार और वफादार होना चाहिये। उन्हें एक-दूसरे के लिये सम्मान की भावना रखनी चाहिये और देश के कल्याण के लिये बनायी गयी सामाजिक व आर्थिक नीतियों का भी सम्मान करना चाहिये।
  • लोगों को अपने बच्चों को शिक्षा में शामिल करना चाहिये और उनके स्वास्थ्य और बचपन की देखभाल करनी चाहिये। उन्हें अपने बच्चों को बाल-श्रम और अन्य अपराध करने के लिये मजबूर नहीं करना चाहिये।
  • लोगों को अपने देश को दुनिया में सबसे अच्छा देश बनाने के लिये प्रयास करना चाहिये।

एक नागरिक होने के नाते देश के लिये मेरा कर्त्तव्य – निबंध 2 (400 शब्द)

परिचय

किसी भी व्यक्ति के कर्त्तव्य उसकी वो जिम्मेदारी हैं जिन्हें उसे व्यक्तिगत रुप से निभाना होता हैं। एक नागरिक जो समाज, समुदाय या देश में रहता हैं, वो देश, समाज या समुदाय के लिये बहुत से कर्त्तव्यों और जिम्मेदारियों को रखता हैं जिन्हें उसे सही तरीके से निभाना होता हैं। लोगों को अच्छाई में विश्वास रखना चाहिये और देश के प्रति महत्वपूर्ण कर्त्तव्यों को कभी भी नजअंदाज नहीं करना चाहिये।

देश का एक नागरिक होने के नाते मेरा देश के लिये कर्त्तव्य

हमारे देश को ब्रिटिश शासन से आजादी मिले बहुत वर्ष बीत गये जो बहुत से महान स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान और संघर्ष से प्राप्त हुई थी। वो देश के प्रति अपने कर्त्तव्यों के वास्तविक अनुसरणकर्त्ता थे जिन्होंने लाखों लोगों के साथ अपना अमूल्य जीवन गवाकर स्वतंत्रता के सपने को हकीकत बनाया। भारत की स्वतंत्रता के बाद, अमीर लोग और राजनेता केवल अपने खुद के विकास में लग गये न कि देश के विकास में। ये सत्य हैं कि हम ब्रिटिश शासन से आजाद हो गये हैं हांलाकि, लालच, अपराध, भ्रष्टाचार, गैर-जिम्मेदारी, सामाजिक मुद्दों, बाल श्रम, गरीबी, क्रूरता, आतंकवाद, कन्या भ्रूण-हत्या, लिंग-असमानता, दहेज-मृत्यु, सामूहिक दुष्कर्म और अन्य गैर-कानूनी गतिविधियों से आज-तक आजाद नहीं हुये।

केवल सरकार द्वारा नियम, कानून, प्राधिकरण, अधिनियम, अभियान या कार्यक्रमों को बनाना काफी नहीं हैं, वास्तविकता में सभी गैर-कानूनी गतिविधियों से मुक्त होने के लिये इन सभी का प्रत्येक भारतीय नागरिकों के द्वारा कड़ाई से अनुसरण किया जाना चाहिये। भारतीय नागरिकों को वफादारी के साथ देश के प्रति अपने कर्त्तव्यों को पालन गरीबी, लिंग असमानता, बाल श्रम, महिलाओं के खिलाफ अत्याचार और अन्य सामाजिक मुद्दों के उन्मूलन के साथ ही सभी के भले के लिये करना चाहिये। भारतीय नागरिकों को अपना राजनीतिक नेता चुनने के अधिकार हैं जो देश के विकास को सही दिशा में आगे ले जा सके। इसलिये, उन्हें अपने जीवन में बुरे लोगों को दोष देने का कोई अधिकार नहीं हैं। उन्हें अपने राजनीतिक नेता को वोट देते समय अपनी आँखे खुली रखनी चाहिये और एक ऐसा नेता चुनना चाहिये जो वास्तव में भ्रष्ट मानसिकता से मुक्त हो और देश का नेतृत्व करने में सक्षम हो।

निष्कर्ष

ये भारत के नागरिकों के लिये आवश्यक है कि वो वास्तविक अर्थों में आत्मनिर्भर होने के लिये अपने देश के लिये अपने कर्त्तव्यों का व्यक्तिगत रुप से पालन करें। ये देश के विकास के लिये बहुत आवश्यक हैं जो तभी संभव हो सकता है जब देश में अनुशासित, समय के पाबंद, कर्तव्यपरायण और ईमानदार नागरिक हो।

देश के लिये मेरे क्या कर्त्तव्य है

देश का एक नागरिक वो होता है जो न केवल अपना बल्कि उसके/उसकी पूर्वजों ने भी लगभग पूरा जीवन उस देश में व्यतीत किया हो, इसलिये प्रत्येक राष्ट्र के लिये कुछ कर्त्तव्य भी रखते हैं। एक घर का उदाहरण लेते है जहाँ विभिन्न सदस्य एक साथ रहते हैं हांलाकि, प्रत्येक घर के मुखिया, सबसे बड़े सदस्य द्वारा बनाये गये सभी नियमों एवं प्रतिनियमों का अनुसरण घर की भलाई और शान्तिपूर्ण जीवन के लिये करते है। उसी तरह, हमारा देश भी हमारे घर की तरह ही है जिसमें विभिन्न धर्मों के लोग एक साथ रहते है हांलाकि उन्हें कुछ नियमों और कानूनों का अनुसरण करने की आवश्यकता होती है जो सरकार ने देश के विकास के लिये बनाये हैं। देश के कर्त्तव्यों के प्रति वफादार नागरिकों का उद्देश्य सभी सामाजिक मुद्दों को हटाकर, देश में वास्तविक स्वतंत्रता लाकर देश को विकासशील देशों की श्रेणी में लाना होता हैं।

सरकारी या निजी क्षेत्र के कार्यालयों में, कार्य करने वाले कर्मचारियों को समय से जाकर बिना समय व्यर्थ में गवाये अपने कर्त्तव्यों को वफादारी के साथ निभाना चाहिये क्योंकि इस सन्दर्भ में सही कहा गया हैं कि, “यदि हम समय बर्बाद करेंगें तो समय हमें बर्बाद कर देगा।” समय किसी के लिये भी इंतजार नहीं करता, ये लगातार भागता रहता हैं और हमें समय से सीखना चाहिये। हमें तब तक नहीं रुकना चाहिये जब तक कि हम अपने लक्ष्य तक न पहुँच जाये। हमारे जीवन का सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य अपने देश को वास्तविक अर्थों में महान बनाना हैं।

हमें स्वार्थी नहीं होना चाहिये और अपने देश के प्रति अपने कर्त्तव्यों को समझना चाहिये। ये केवल हम है, न कि कोई और, जो इससे लाभान्वित हो सकते हैं और शोषित भी। हमारी प्रत्येक गतिविधि सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह से (यदि हम सकारात्मक कार्य करेंगें तो लाभान्वित होंगे और यदि नकारात्मक कार्य करेंगें तो शोषित होंगें) प्रभावित करती हैं। इसलिये, क्यों न आज ये प्रतिज्ञा करें कि अपने ही देश में शोषित बनने से खुद को बचाने के लिये आज से हम प्रत्येक कदम सही दिशा में सकारात्मकता के साथ उठायेगें। ये हम ही हैं जिन्हें अपने देश के लिये सही नेता को चुनकर उस पर राज्य करने का अधिकार प्राप्त हैं। तो हम दूसरों और नेताओं को क्यों दोष दे, हमें केवल खुद को दोष देना चाहिये न कि दूसरों को क्योंकि वो हम हीं थे जिन्होंने माँग के अनुसार अपने कर्त्तव्यों का पालन नहीं किया। हम केवल अपनी ही दैनिक दिनचर्या में लगे रहे और दूसरों के जीवन, पाठ्येतर गतिविधियों, देश के राजनीतिक मामलों, आदि से कोई मतलब नहीं रखा। ये हमारी गलती हैं कि हमारा देश आज भी विकासशील देशों की श्रेणी में हैं न कि विकलित देशों की श्रेणी में।

निष्कर्ष

ये बहुत बड़ी समस्या हैं हमें इसे हल्कें में नहीं लेना चाहिये। हमें लालची और स्वार्थी नहीं होना चाहिये; हमें खुद और दूसरों को स्वस्थ्य और शान्तिपूर्ण जीवन जीने देना चाहिये। अपने देश का उज्ज्वल भविष्य हमारे अपने हाथ में हैं। अभी भी खुद को बदलने का समय हैं, हम और भी अच्छा कर सकते हैं। खुली आँखों से जीवन जीना शुरु करके अपने देश के प्रति अपने कर्त्तव्यों का पालन करना चाहिये। हमें अपने हृदय, शरीर, मस्तिष्क और चारों तरफ के क्षेत्रों को साफ करके एक नयी व अच्छी शुरुआत करनी चाहिये।

लेखक

(प्रमोद कुमार)

सामाजिक कार्यकर्ता

नई दिल्ली

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