आज हम विज्ञान और भक्ति के मध्य फंसे मनुष्य मात्र की दुविधा पर वार्ता करेंगे अर्थात आत्मा पर ! आत्मा पर बात करेंगे, किन्तु हमने विषय का शीर्षक लिखा है आत्मिक ऊर्जा, इसलिए इसे प्रारंभ में ही स्पष्ट करना अनिवार्य है । मित्रो ! मेरे शोध के अनुसार आत्मा की ऊर्जा है !! जैसे पृथ्वी को पृथ्वी न कहकर हम, भूमि, जल, मृदा, वृक्ष, जीव-जन्तु, पशु-पक्षियों का समुच्य कहें तो आपको कैसा लगेगा, वैसे ही मनुष्य की आत्मा की स्थिति से ही उसके मन, विचार, व्यवहार, कर्म और निर्वाण निश्चित होता है, अर्थात उसकी अवस्था ।
हम कह सकते हैं, कि मनुष्य ईश्वर का ही अंश है, आत्मा वहीं से जनित है, आपका शरीर प्रकृति प्रदत्त है । अतः ब्रह्मांड में कोई भी प्राणीमात्र सजीव है, वह एकमात्र उसमें विद्यमान आत्मा के कारण, आपकी प्राणवायु ही आत्मा है । उसे शरीर भी कहना सही नहीं होगा क्योंकि शरीर अर्थात जीवित प्राणी, अन्यथा मृत शरीर कहा जाएगा, और मृत शरीर का मात्र मिट्टी है । पंच तत्वों से बनी यह देह पुनः वापस अपने-अपने द्रव्यों में समा जाती है । मात्र आत्मा अर्थात प्राणवायु आपकी देह में न होने कारण आप निर्जीव हो जाते हैं । हमें इसे बहुत ही महीनता से समझना होगा, सूक्षमता देखना होगा, इसीलिए सरलता से यहाँ समझने का प्रयास किया जा रहा है । अब इससे आगे चले तो समझ में आता है । जब आपकी आत्मा ही आपके जन्म और शरीर का कारण और साधन है, तब इस शरीर से भी ज्यादा काम करने की जरूरत है, आपकी आत्मा पर..
आत्मा की परवरिश कैसे करें : यह अत्यंत सरल और सहज है। हमारे यहाँ सदैव सदाचार और वैदिक परंपराओं के अनुसार जीवन जीने का विधान बनाया गया है । प्रकृति संवत जीवन जीना, आदर्श मानवमूल्यों के अनुसार, सुचिता, शुभता और सदाचार से जीवन यापन करना । मानवीय कर्तव्यों को आदर्श जीवन मूल्यों के अनुसार निर्वहन करने के लिए कहा गया है । हमारी सभी परम्पराएं, हमारा सामाजिक तानाबाना, पर्व-त्योहार, हमारे समस्त संस्कार आदि सभी विधान ऐसे बनाए गए हैं, जिनसे आपकी आत्मा को वर्तमान जन्म में समुचित परवरिश प्राप्त हो सके । इसी प्रक्रिया से होकर गुजरने पर ही हमारी भावना और हमारा मन अर्थात मानस तैयार हो सके, हमारे विचार और हमारा चित्त विकसित हो सके, अर्थात एक आदर्श मनुष्य की कल्पना करते हुए ही सृष्टि में मनुष्य के जीवन का विधान किया गया है । किन्तु समस्या वहाँ से प्रारंभ हुई, जहां से मनुष्य ने शार्ट-कट मारना प्रारंभ हुआ, अपनी सुविधानुसार व्यवस्थाओं को तोड़ मरोड़ा गया, मनमाना आचरण करना, अधिकतम विधानों की अनदेखी कर, अपने मनानुकूल आचरण करने के कारण लोगों में आत्मिक दर्शन की शक्ति क्षीण होने लग गई है ।
आत्मा में है अथाह ऊर्जा : हमें यह समझना होगा, कि आपमें विद्यमान, आपको संचालित करने वाली आत्मा अथाह ऊर्जा का पुंज है। आपने अपनी आत्मा के दर्शन कैसे किए, किस रूप में किए, आपने अपनी आत्मा को किस रूप में लिया, इसपर बहुत कुछ आपकी सफलता और असफलता निर्भर करती है । इसके मूल में है आपकी भावना और वो यहीं से जन्म लेती है। इसे इस रूप में भी कह सकते हैं, कि आपकी आत्मा की पहली उत्पत्ति है, आपकी भावना.. अब आपकी भावना कैसी बनी अथवा बन रही है, उसपर बहुत कुछ आपका भविष्य और वर्तमान निर्भर करता है । आपकी भावना अमृतमयी बने, आपकी आत्मा पवित्र और ऊर्जावान बने, आपको आपके जीवन का उद्देश्य और आपको सदकर्म के मार्ग पर चला सके । क्योंकि आपकी देह में आपकी आत्मा ही ऊर्जा का पुंज है, यही एकमात्र श्रोत है, जिससे आप जो चाहे प्राप्त कर सकते हैं । अब चाहे वह आपके जीवन की दिशा तय करना हो, या आपके जीवन का लक्ष्य निर्धारण हो या उस तक पहुंचना हो । और हाँ ? यदि आप अपनी आत्मा को सही से नहीं समझ पाए, न वहाँ तक पहुँच पाए, और न ही आत्मिक सकेतों को समझ पाए तो यह आपके पराभव का कारण भी बन सकते हैं । अनजाने और नासमझी में, अपने मनमाने और विषयों के वशीभूत आचरण से आपके व्यक्तित्व में मन प्रधानता और शासन बढ़ जाएगा अतः फिर उसी वेग से आपका पराभव भी निश्चित है । यह सब आत्मा की ऊर्जा के कारण ही हो रहा होता है । इसकी सकरात्मकता आपके द्वारा की गई इसकी परवरिश पर ही निर्भर है, जैसी आपने परवरिश की वैसा ही आपको परिणाम मिलेगा अर्थात वैसा ही वैसा आपके जीवन में घटित होगा । आप किसी तपश्वी के जीवन को निकटता से देखेंगे, आप किसी सफल प्राणी की सफलता के भेद को जानेंगे, आप किसी आध्यात्मिक प्राणी के मूल को समझेंगे तो आपको समझ आएगा, कि संबंधित की भावना कितनी पवित्र, कितनी तीक्ष्ण, कितनी उदारता, कितनी विहलता, कितना वैराग्य भरा होता है । यह शक्तिशाली भावना आपको आपकी आत्मिक ऊर्जा के कारण ही तो मिल सकी है, बस इतनी सी बात समझनी है ।
आत्मिक ऊर्जा के संकेतों को समझना : असल में आपकी आत्मा आपको सदैव सही मार्ग दिखाएगी,किन्तु आपका मन आपको विषयों के आकर्षण में ले जाने का संकेत देगा, बस यही हमें समझना है, कि आत्मा हमें संकेत दे रही है, जिसे हम मानना नहीं चाहते । जो लोग मानते हैं वो मन विजय प्राप्त कर अपने उद्देश्यों को प्राप्त कर रहे होते हैं । उनका जीवन सहजता से परिपूर्ण सफलता के पथ पर सदैव अग्रसर रहता है । उनकी आभा-प्रभा सदैव उन्हे कीर्ति के पथ पर चलाती है । उनके सफलता हेतु उनके द्वारा किए गए सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं, क्योंकि उनकी भावना शुद्ध होती है और उद्देश्य पवित्र होता है । जिस कर्म से हिंसा होती हो, जिस कर्म से आपका मन मलीन होता हो, जिस कर्म से किसी की हानि होती हो, जिस कर्म से किसी की कष्ट पहुंचता हो, उसे न करने का संकेत आपकी आत्मा आपको देती है, यही संकेत हैं, जिन्हे आप समझना नहीं चाहते और समझते भी हैं तो समझकर समझना ही नहीं चाहते । असल में आप मानते नहीं ! आप करना चाहते हैं अपनी मनमानी, आप तुष्ट करना चाहते हैं अपने अहंकार को, आप पर आपका मद हावी होता है । और इतना होता है, कि किसी को तो लगता है कि वही संसार चला रहे हैं, सब कुछ अर्जित कर लो, न मिले तो छीन लो, मान-सम्मान, पद-प्रतिष्ठा, धन संपत्ति, बड़ा घर, बड़ी गाड़ी सब अपना हो, जैसे सब कुछ बना रहेगा और आप भी बने रहोगे इस जगत में, उसका भ्रम टूटता है, उसके शरीर के साथ छोड़ने के समय, अपनी मृत्यु को निकट आते देख उसे सब वो सब संकेत स्मरण होने लगते हैं, जिन्हें वह उस समय पहचान लेता और अपनी आत्मा के आदेश के अनुरूप व्यवहार कर लेता तो उसका उत्तरार्ध इतना भयानक और डरावना न होता । वह जीवन में इस आयु एवं अवस्था का भी समुचित आनंद ले सकता था ।
कैसे करें आत्मिक ऊर्जा का संचय : आपकी आत्मिक ऊर्जा का संचय आप एकमात्र आपकी पवित्र भावना के माध्यम से कर सकते हैं । और आपकी भावना का निर्माण आपके परिवेश,आपके संस्कार, आपकी जीवन दृष्टि, आपकी शिक्षा, आपका लक्ष्य, आपका संयम और संकल्प इस पर निर्भर करता है । इसलिए अपनी भावना को सदैव जागृत रखिए, अपनी आत्मा के संकेतों को समझिए और उनपर निर्भीकता पूर्वक चलिए । तब देखिए आपकी भावना ही आपकी शक्ति बन जाएगी, इसी से आपमें आध्यात्मिक चेतना का विकास होगा, आगे चलकर आप अपने जीवन में जो चाहेंगे वो आपको मिलेगा । जो अनावश्यक होगा उसे ईश्वर स्वयं ही हटा देंगे, वांछित ही आपके जीवन में बचेगा और सबसे बड़ी बात उसे देखने और समझने की दृष्टि आपमें विकसित होगी । जब ऐसी अवस्था किसी मनुष्य मात्र के जीवन में आती है, तो वह अपनी आत्मिक ऊर्जा का कैसे संचय करना है, वह भी भली भांति समझ जाता है । इसे भी मैं सरल शब्दों में समझाऊँ तो, आप अपनी आत्मा को जितना पवित्र रखेंगे, जितना उसके अनुसार व्यवहार करेंगे, उतनी प्रेम की भावना आपके हृदय में विकसित होने लगेगी, अतः आपका विमुक्त मन और आपके हृदय में प्रेम, करुणा, दया, आपकी विशाल दृष्टि सब कुछ आपके व्यक्तित्व में आपकी आत्मिक ऊर्जा के संचय के कारण ही होगा । अर्थात जब आपकी भावना पवित्र और विशाल होगी तब से आपको आत्मिक ऊर्जा संचय के लिए कोई भी कृतिम उपाधान नहीं करने पड़ेंगे ।
लेखक
(प्रमोद कुमार)
आध्यात्मिक प्रवक्ता
नई दिल्ली, भारत
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