प्रवाह का महत्व मात्र जल के लिए ही महत्वपूर्ण नहीं ? प्रवाह मनुष्य जीवन के लिए भी उतना ही जरूरी है, जितना कि जल और वायु के लिए है । प्रवाह में ही गति है ! इसे समझने के लिए आपको मनुष्य की सामान्य वृति को समझना होगा ।
हम देखते भी हैं और स्वयं समझते भी हैं,कि अधिकांश लोग अपने जीवन का कोई लक्ष्य बना लेते हैं, किसी का बड़ी नौकरी पाना, किसी का बढ़ा व्यवसाय खड़ा करना तो किसी का बहुत बड़ी राजनैतिक अथवा सामाजिक हस्ती बनना, आदि आदि .. ! सबके लक्ष्य अलग अलग हैं और सबके मार्ग अलग अलग हैं, किन्तु सबकुछ अलग अलग होने के बाद भी सभी एक जैसा फल चाहते हैं और वो है, कि वो सुख पाना चाहते हैं जीवन में संतुष्टि पाना चाहते हैं, शांति चाहते हैं । कुछ को ऐसा लगता है, कि जो है सब सही है, क्या करना, जैसा होना है होगा ही, कुछ को परिवार और व्यवस्था से मिल जाता है, उसको लगता है क्या करना ? क्यों करना ? किसके लिए करना ? बहुत से लोग पारिवारिक जिम्मेदारियों के चलते बहुत कुछ नहीं करना चाहते, कुछ लोग भाग्य को कोसते कोसते ही अपने आपको कर्महीन बना लेते हैं । आपने अनेकों कारणों से बहुत से लोग समाज में ऐसे देखे होंगे जो कुछ करना ही नहीं चाहते और कई तो ऐसे होते हैं जिन्हें ऐसा लगता है, कि सब अपने आप ही हो जाता है, कुछ भी करने की जरूरत नहीं, खैर ! हम अभि बस इतना समझ लें कि जब किसी चलती नदी के पानी में से आप एक पात्र में निकाल कर रख लीजिए और एक दो दिन ऐसे ही रखिए, तो आपको समझ आएगा कि वह जल जिससे लोग अपनी प्यास बुझाते थे, खेतों में पानी देते थे, बहु उपयोगी जल, एक पात्र में ठहरने से वही जल में सड़ने लग जाता है । ऐसे ही हम देखते हैं वायु सर्वत्र है, ऐसे में आप एक कक्ष को बहुत देर तक बंद करके रखिए तो समझ आएगा वहाँ दम घुटने लग जाता है, एक दिन वायु का वेग न हो तब आप वातावरण में प्रदूषण, मिट्टी के कण और गर्मी देखिए ! इन सब बातों को बताने का मेरा आशय मात्र इतना था कि हमें यह बहुत ही गंभीरता से समझना होगा कि गति में ही जीवन है, प्रवाह में ही जीवन है । यह बात ऐसे न भी समझ पाएं तो प्रकृति से समझिए, हमारे ऋषियों और संतों के जीवन से समझिए कि यदि वहाँ प्रवाह न हो तो कैसा हो !
हमारे शरीर में श्वांस का प्रवाह है, तभी वह शरीर है अन्यथा वह मिट्टी के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं । श्वांस का प्रवाह रुक, प्रकृति का प्रवाह रुका तो जीवन कैसा होगा, हम कल्पना कर सकते हैं । इसी प्रकार हम जब अपने कर्म से, अपने विचारों से, अपने व्यवहार से, अपने मन और वचन से थम जाते हैं, असल में तब हम मर जाते हैं, जड़ हो जाना ही मृत्यु है । श्वांस रुकना एक व्यवस्था है, किन्तु अपने आपको जीते जी मरने का उपक्रम है, रुक जाना, थम जाना । इसके कारण कुछ भी हो सकते हैं, आप अपने ठहराव के बहाने कुछ भी बना सकते हैं, लेकिन जो भी परिस्थति निर्माण हुई है, उसके जिम्मेदार आप हैं कोई और नहीं ! हाँ ! यह बात भी अत्यंत महत्व पूर्ण है, कि यह ठहराव, यह शिथिलता आती क्यों है ? इसका एकमात्र कारण है अज्ञानता ! और दूसरा कोई कारण नहीं ।
अज्ञानता केवल ज्ञान से ही भाग सकती है, यहाँ मेरा कहना मात्र ज्ञान से है, न कि अध्ययन से या बड़ी बड़ी जानकारियों से, इसीलिए व्यक्तित्व का मजबूत होना बहुत जरूरी है, क्योंकि विपरीत परिस्थितियों में,मन और तन के व्याधि युक्त होने की अवस्था में आपका परिपक्व व्यक्तित्व ही आपकी अज्ञानता के बादल हटाकर आपको खुले आसमान दिखाएगा ।
बहुत से लोग आपको कहते हुए दिख जाएंगे, कि अपने जीवन में लक्ष्य तय करो, हिम्मत रखो, ऊर्जा आप में बनाओ, मजबूत बनो, लेकिन आप विचार करो जब आप मन,कर्म और वचन से प्रवाह में नहीं होते, आपमें गति नहीं होती तो आप देखेंगे और महसूस करेंगे, आपको सब कुछ अहसास होते हुए भी आप कुछ कर नहीं पायेगें, क्योंकि आपके मन में प्रवाह की चाह नहीं है, आपने वो नयापन करने की उमंग नहीं है । इसलिए आप केवल देखते तो जाएंगे लेकिन कुछ कर नहीं पाएंगे । यह बातें जो यहाँ हम पढ़ रहे हैं, जिन्हें मैं कह रहा हूँ, वह सब बातें बहुत से लोग होते तो देख रहे हैं किन्तु कर नहीं पाते कुछ भी, उसका कारण है, वो बढ़ने में नहीं कुछ घटने में विश्वास रखते हैं, कि कुछ घट जाए, कहीं से कुछ हो जाए, मात्र इसी प्रतीक्षा में वह लोग इस बहुमूल्य जीवन को पल प्रति पल गंवा रहे होते हैं ।
इसलिए जीवन में आप कुछ लक्ष्य रखें कि न रखें, कोई आपका संतुष्टि बिन्दु सुनिश्चित हो न हो, मात्र आप अपनी जिंदगी में प्रवाह रखिए, सब शुद्ध होता चला जाएगा और सब छँटता चला जाएगा और अंत आपको वही मिलेगा जिसके आप पात्र हैं,और वह भी उचित समय पर, इसलिए अपनी तंद्रा को तोड़िए और बढ़िए समय के साथ ।
लेखक: प्रमोद कुमार
प्रेरक प्रवक्ता, नई दिल्ली, भारत
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