आप कभी-कभी किसी ईर्ष्यालु व्यक्ति को गौर से देखेंगे तो ध्यान आएगा कि उसमें कितनी व्याकुलता है, उसके मन और स्वभाव में अथाह अशान्ति भरी पड़ी है । उसे न कोई अपना मानता है और न उसपर कोई भरोसा ही करता है । न उसकी बात पर कोई भरोसा है और न उसकी किसी गतिविधि पर उसके कोई साथ खड़ा होता है । उसे जानते सब हैं, लेकिन उसे अपने साथ सहभागी कोई नहीं करता, न उसे लोग अपनी खुशी में सम्मिलित करते हैं और न ही उसके स्वयं की किसी समस्या में कोई उसके साथ खड़ा होता है । अधिकांशतः व्यवहार में देखा गया है, ईर्ष्यालु व्यक्ति किसी को सीधे तो ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचाता, किन्तु वह जिस किसी के भी साथ रहता है, उसे कहीं का नहीं छोड़ता, न उसकी वृद्धि होने देता, न उसकी प्रसिद्धि ही होने देता, सामने वाले का मन खराब रहने लगता है और मन अशांत रहने लगता है, सदैव असुरक्षा का वातावरण उसके साथ रहता है । आप अपने जीवन में सब कुछ सकुशल चाहते हैं तो अपने जीवन में ईर्ष्यालु लोगों की जल्द से जल्द पहचान करें, और उन्हें अविलंब दूर भगायें । तभी आपको सफलता भी मिलेगी और शांति भी, आइए ! जानते हैं, जाने-अनजाने आपके स्वभाव में ईर्ष्या के भाव आने लगे तो उन्हें कैसे पहचाने, साथ ही यदि आपके जीवन में कोई ईर्ष्यालु व्यक्ति है तो उसे कैसे पहचाने एवं उससे दूरी कैसे बनाएं ?
क्या है ईर्ष्या : ईर्ष्या के व्यवहारिक दुर्गुण है, जो आपके प्रारब्ध, आपके पारिवारिक वातावरण एवं आपके मन स्वभाव आदि के कारण आपके मन में, आपके स्वभाव में कब और कैसे उतर जाए, सामान्य मनुष्य नहीं समझ पाता । इसे समझने के लिए आपको, आपके मन की तीक्ष्णता और आध्यात्मिक पुष्टता चाहिए । इसे पहचानने के लिए, हमें अपने मन में उत्पन्न होने वाले विचारों और भावों को बहुत ही बारीकी से समझना होगा, हर क्षण सजग रहना होगा । जब हमें किसी की सफलता में अरुचि होने लगे, किसी की प्रशंसा से खीज होने लगे तो समझ जाइए, हमारे मन में ईर्ष्या घर करने लगी है । जब किसी की खुशी और सफलता से आपको दिक्कत होने लगे तो आपके भीतर ईर्ष्या नामी शत्रु ने अपना स्थान बना लिया है । और वह अपनी जगह बनाते समय आपको पता ही नहीं चलने देगा, आपको समझ में ही तब आएगा जब आपको चोट पहुँचने लगेगी । आप घिरने लगोगे, लोग जब आपका तिरस्कार करने लगेंगे । आपकी ईर्ष्या दूसरों को घोर कष्ट पहुंचा कर, आपके-अपनों को आपसे दूर करके, आपको खाने लग जाएगी, तब आपको शायद पता चले, हो सकता है तब इतनी देर हो जाए, कि वह आपके स्वभाव में ऐसी समा जाए, जैसे कोई रोग आपके रक्त में समा जाता है तो कितना भयावह होता है । इसलिए इसे प्रारंभ में पहचान कर लेंगे तो आपको और आपके अपनों के जीवन में आनंद रहेगा ।
कैसे है मृत्यु का द्वार : सर्वप्रथम तो ईर्ष्या आपका ध्यान अपने ऊपर से हटाकर कर अन्यत्र लगा देती है, सबसे पहली हार आपकी वहीं हो गई । ईश्वर प्रदत्त आपके भीतर प्रतिभाओं पर अपना ध्यान केंद्रित करने के स्थान पर, आप किसी और काम में अपनी ऊर्जा व्यर्थ करने लगते हैं, आपका यह स्वभाव भी आपको जीते जी मृत्यु के द्वार तक ले जाने के लिए पर्याप्त है । किन्तु फिर भी अन्य बहुत से कारण है जिनकी चर्चा करना अति आवश्यक है । जैसे कि आपके स्वभाव में, आपके मन में जब किसी से ईर्ष्या के भाव पनपने लगेंगे तो सर्वप्रथम उसकी शुरुआत बाहर वालों से होगी जरूर, किन्तु वह कब आपके अपनों तक पहुँच जाएगी, आपका पता नहीं चल सकेगा । आपके व्यवहार में, आपके स्वभाव में, आपकी इच्छाओं में, आपकी भावनाओं में, आपकी सोच में, आपकी नीति और नीयत में जब ईर्ष्या का बाहुल्य होगा तब आपका यश, आपकी समृद्धि, आपका पद, आपकी पहचान, आपकी आत्मिक शांति, आपका शरीर, आपका बल, आपकी बुद्दि आपका साथ नहीं दे सकेंगे, आपके चहुं ओर अशान्ति और असफलता छाई रहेगी । न आप सफल न शांत और यही आपसे जुड़े हुए लोगों का होगा । तो न आप अपने हो सके और न आपके अपने, आपके हो सकेंगे, यही मृत्यु है ! असल में तो यह मृत्यु से भी भयावह दंड है, इस सृष्टि का, जिसका कारण स्वयं मनुष्य है ।
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इसलिए ! अपने मन न कभी किसी के प्रति ईर्ष्या न पनपने दें और न किसी ईर्ष्यालु को अपने जीवन में स्थान दें । सदैव सहज रहें, शांत रहें, सम भाव में रहें । सभी प्राणियों में सद्भाव रखें । सबको प्रेम करें, करुणायुक्त जीवन जियें, ईर्ष्या कभी निकट भी न आएगी ।
लेखक
(प्रमोद कुमार)
आध्यात्मिक वक्ता
नई दिल्ली, भारत
22.10.2023
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