जीवन के प्रति सभी का अपना-अपना दर्शन और अपनी-अपनी दृष्टि होती है । जो जैसा समझता है, वैसा ही व्यवहार करता है ! सर्वप्रथम हमें यह बात अच्छे से समझनी पड़ेगी । क्योंकि अधिकतर लोग, कोई बात सुनी नहीं, देखि नहीं कि बहुत जल्दी तुलना करने लग जाते हैं । यह बात समझे बगैर कि इस संसार में आने वाले हर प्राणी मात्र का हेतु और माध्यम अलग-अलग होते हैं, उसकी प्रतिभा, क्षमता भी अलग-अलग होती हैं, उसका दृष्टिकोण और समझने का दृष्टिकोण सभी में अलग-अलग है, इसलिए तुलना करना व्यर्थ है । हाँ ! समझने के लिए, प्रेरित करने के लिए उदाहरण देना अलग विषय है ।
अब इन सब से पर विचार करें तो बात आती है,अपने विवेक की, अर्थात आपमें दृश्य और अदृश्य शक्तियां और प्रतिभाओं के आधार पर आपके सोचने, करने और निर्णय लेने के पीछा विकसित हुआ आपका विवेक ! यही आपके कर्म बनाता है, कर्म का प्रेरक आपका विवेक ही है, आपकी समझ ही है । अपने मन और बुद्धि, अपने शरीर और कर्मों को, आपके व्यवहार और आपके स्वभाव के संतुलन और संचालन में आपके विवेक का बड़ा योगदान होता है । सामान्यतः विवेकशील मनुष्य में धैर्य,क्षमा,सौम्यता,सरलता, सहजता जैसे सद्गुण दिखाई पड़ते हैं । इसे सामान्य ना मानते हुए, इसकी गहराई में जाएंगे तो समझ आएगा, कि उसने कैसे अपने काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार पर नियंत्रण किया हुआ है, उसके पीछे उसका विवेक ही मुख्य कारण है । आपके विवेक को पुष्ट करने में आपकी आध्यात्मिक पुष्टता होने भी बहुत जरूरी है, साथ ही आपका संग और वातावरण, आपके पारिवारिक संस्कार और आपका स्वयं का रुझान । यहीं से बात प्रारंभ होती है, कि आप जीवन में क्या छोड़ें और क्यों छोड़ें ? आइए समझते हैं :-
इस बात को समझने के लिए, एक उदाहरण का सहारा लेते हैं, जैसे कि हम विचार करें तो समझा आएगा कि प्राणी के इस पंच भौतिक शरीर को जीवित रखने के लिए प्रकृति से ऑक्सीजन कितनी मात्रा में लेनी हैं, कितनी आपके शरीर को जरूरत है, एक सामान्य शरीर ठीक उतनी ही ऑक्सीजन ग्रहण करता है । आप जब भोजन करते हैं, तो कौन सी फल-सब्जी में कौन-कौन से गुण शरीर के किस-किस अंग को पुष्ट करेंगे वह वहीं-वहीं पहुँच जाता है । कैसे पहुँच जाता है,क्यों पहुँचता है, कौन पहुंचाता, ज्यादा क्यों नहीं पहुंचता, हम ज्यादा पहुंचाने की कोशिश करते हैं, तो उसके क्या दुष्परिणाम होते हैं, हम सब गंभीरता से देखें, समझें तो समझ आएगा कि यह कैसे और क्यों हो रहा है । सृष्टि में तो इतने प्रकार की गैसें विद्यमान हैं, फिर कैसे हमारा शरीर ऑक्सीजन को ही अधिकतम ग्रहण करता है । तो समझ आएगा कि हमसे ज्यादा हमारे शरीर को पता है, कि हमें क्या चाहिए और कितना चाहिए ।
अर्थात हम यदि प्रकृति के इस संकेत को भी समझ जाएंगे, तो ध्यान में आएगा कि हम अपने सामान्य व्यावहारिक जीवन में भी हमें देखना होगा कि हमें क्या चाहिए, क्यों चाहिए ? और उसके लिए किन-किन साधनों की जरूरत है, और कितनी-कितनी मात्रा में जरूरत है ? सामान्यतः यह देखा गया है, कि मनुष्य अपनी अधिकतम ऊर्जा, अपना अधिकतम समय ऐसी विषय वस्तुओं के पीछे खराब करता है, जिनका उसके जीवन में महत्व ही नहीं है, अधिकतम लोगों को यह समय बीत जाने के बाद पता चलता है । किन्तु जो विवेकशील प्राणी होते हैं, वह अपनी प्रतिभा और क्षमता से,अपनी तीक्ष्ण बुद्धि के बल से अपनी प्राथमिकताएं तय करते हैं । वही आगे बढ़ते हैं ।
यह स्तिथि तो और भी भयावह होती है, जब मनुष्य किसी दूसरे को देखकर, किसी की सुनकर अपने जीवन के लक्ष्य तय करता है, और उस लक्ष्य तक पहुँचने के लिए, जैसा मार्ग चुनता है, जैसे उपक्रम करता है, वही उसके मानसिक अवसाद और पिछड़ने का कारण बनते हैं । इसे आप सुधारना भी चाहेंगे, तो भी आपका बहुमूल्य समय तो गया ना, आपकी ऊर्जा तो नष्ट हुई ना । आपकी दूरगामी योजना, प्राथमिकता और आपके तात्कालिक निर्णय आपके विवेक पर ही निर्भर करते हैं । इसलिए आप अपने जीवन की प्राथमिकताओं एवं अपने लक्ष्य के प्रति यदि विवेकशील दृष्टि रखते हैं, तो आप अच्छे से समझ जाएंगे, कि आप अपने जीवन में किस विषय वस्तु को पकड़ें और किसे छोड़ें, यह आपको अच्छे से समझ आ जाएगा । छोटी बड़ी चुनौतियाँ, विपरीत परिस्थितियाँ हर मनुष्य के जीवन में हैं, सभी के जीवन में प्रतिकूलता-अनुकूलता लगी रहती है । आपके जीवन में अवसर आते-जाते रहते हैं, लोग भी आते जाते रहते हैं, कुछ भी स्थाई नहीं, आपने मध्य निहित है तो मात्र आपका अपनापन, और उसे संभालने के लिए, महत्वपूर्ण है आपका विवेक !
आपके अंदर क्षमा, दया, सद्गुण, सरलता, निर्भीकता, कार्यकुशलता आदि सभी गुण हों, काम, क्रोध, लोभ-मोह, अहंकार आदि दुर्गुण न हों, यह तो अधिकांश मनुष्य चाहते हैं, कौन नहीं होना चाहता सफल, कौन नहीं चाहता अपणी कीर्ति, कौन नहीं होना चाहता धनवान, कौन नहीं होना चाहता साधन सम्पन्न, सब होना चाहते हैं । यह सब आपको आपकी विवेकशीलता के बल पर ही प्राप्त हो सकते हैं । अतः जिंदगी में क्या छोड़ें और क्या नहीं, क्यों छोड़ें और किसके लिए, इसका निर्धारण करना अत्यंत कठिन और दुष्कर है, इतने कम शब्दों में, किन्तु यह सब संभव है, यदि आप अपने विवेक को जागृत कर लें तो ! जैसे पढ़ाई और ज्ञान में अंतर है, वैसे ही समझ और विवेक में अंतर है । जैसे की प्रशासनिक और राजनयिक पद के क्या नियम हैं और क्या विधि निषेध इसका एक विधान हो सकता है, किन्तु उसका अनुपालन करने हेतु एक विवेकशील पदाधिकारी का उस पद पर होना अनिवार्य है, तभी सही अनुपालना हो सकेगी । अतः आपका विवेक ही आपका न्यायाधीश है, जो हर समय आपके साथ रहेगा, आपके लिए रहेगा और वही हर-पल हर क्षण यह तय करेगा कि आप जीवन में क्या छोड़ें और क्यों छोड़ें ?
(प्रमोद कुमार)
लेखक
प्रेरक आध्यात्मिक वक्ता हैं ।
नई दिल्ली, भारत