हम अपने आसपास ऐसे कई लोगों को देखते हैं, जिनमें प्रतिभा तो बहुत है, उनका ज्ञान, उनकी योजकता, उनके भीतर अनेकों गुणों का समावेश भी है, किन्तु फिर भी बहुत आगे नहीं बढ़ पाते ? जहां उन्हें होना चाहिए ! वहाँ तक नहीं पहुँच पाते ! इसका एकमात्र कारण है, ऐसे लोगों में अहंकार का एक बड़ा अवगुण विद्यमान होता है । जो आपकी हजार अच्छाइयों को ढक देता है । जो आपको समझता है उसे पता है, किन्तु प्रथमदृष्टा अथवा सामान्य व्यवहार में किसी के आने पर ही अधिकतम लोग आपसे कतराने लगते हैं । आपको लगता है, आप बहुत अच्छे हैं, सबका भला भी सोचते हैं, अपने काम में मस्त हैं । अपने धर्म के अनुरूप यम नियमों का पालन भी करते हैं, किन्तु समाज में आपको यथायोग्य स्थान नहीं मिल पाता है ? आपके हजार प्रयासों के बाद भी सफलता आपको नहीं मिल रही होती है । इसका मूल कारण है, आपके व्यवहार में रचा-बसा अहंकार ! कई बार आपको पता लगता है, कि आपका अहंकार, आपकी अज्ञानता के कारण लोग आपसे विमुख हो रहे हैं, किसी-किसी को पता ही नहीं चलता कि लोग उससे क्यों कट रहे हैं । अपने भी लोग आपसे दूर होने लगते हैं । कई मनुष्यों को पता भी चल जाता है, किन्तु वह चाह कर भी अपनी बुरी आदत को नहीं छोड़ पाते, आखिर क्यों ?
आइए ! समझते हैं श्री प्रमोद कुमार से :-
प्रश्न : अहंकार क्यों और कैसे पनपता है ?-
उत्तर : सर्वप्रथम तो हमें कई बार यह वंसानुगत ही मिलता है, अर्थात जिस परिवार में अहं की परिपाटी है, उस परिवार में भी आने वाली पीढ़ी वैसे ही लक्षणों से युक्त होगी, बहुत ही विलक्षण होते हैं ऐसे लोग, जो अपनी इस विसंगति को पहचान जाते हैं, और उससे प्रयास पूर्वक बाहर आ जाते हैं । सच में ऐसे लोग बढ़ भागी हैं, अभिनंदन के पात्र हैं । किन्तु अधिकतम लोग ऐसा नहीं कर पाते, जो जीवन पर्यंत अपनी इस विसंगति से कष्ट भोगते हैं, सब कुछ होते हुए भी अपने लक्ष्यों तक नहीं पहुँच पाते । कुछ लोग अपने आसपास के वातावरण के कारण अहंकार युक्त हो जाते हैं । अनेकों मनुष्य अपनी अति महत्वाकांक्षाओं एवं पद एवं सत्ता लोलुपता के कारण, कई लोग आर्थिक समृद्धि की आंधी दौड़ में पागल हो जाते हैं । कई लोग अपनी क्षमताओं से अधिक सपने पाल लेते हैं । अपने जीवन में पर्याप्त अध्यात्म के आभाव में, अपने मन में प्रेम और करुणा के आभाव में, अहंकार से युक्त हो जाते हैं । पद और पैसे के अहम में, अपने चरित्र में सुचिता पूर्वक आगे नहीं बढ़ पाने के आभाव में अधिकांश लोग अहंकार से युक्त हो जाते हैं, और अपने जीवन को बर्बाद कर लेते हैं ।
प्रश्न : हम अहंकार को कैसे पहचानें ? कैसे स्वीकारें कि हमें हो गया है अहंकार ?
उत्तर : जब सामने वाले लोग आपकी बातों को महत्व देना कम कर दें । अपने लोग आपसे अपने मन की बात करने से कतराने लगें । जब आपको लगातार मेहनत करने पर, अनेकों प्रयासों के फलस्वरूप भी अपेक्षित सफलता न मिल पा रही हो ! तब आप समझ जाएं, आप कहीं अहंकार से ग्रसित तो नहीं ? आपकी बातें बड़बोलेपन की तो नहीं हैं ? आपके व्यवहार पर इसका असर तो नहीं पड़ रहा है ? जब आपका मन, आपकी ही बात से सहमत न हो, आपकी कही गई बात आपको अंदर से कचोटने लगे, आपके अंतर्मन में बात कहने पर भी संतुष्टि न हो रही हो, आप बात कहने पर भी अंदर से शांत न महसूस करें, तो आप समझ जाइए आप अहंकार से ग्रसित हैं !
अहंकार की आंतरिक पहचान यह है, कि आपका मन अशांत रहने लगेगा, आपका मन व्याकुल रहने लगेगा, आप किसी से बात करने पर संतुष्ट महसूस नहीं करेंगे, सामने वाले की बात आपको अच्छी नहीं लगेगी, एक स्थान पर आपका मन नहीं लगेगा, आप अपने मान-सम्मान के लिए, किसी के भावों को भी महत्व नहीं देंगे । अपने पारिवारिक संबंधों में भी आपकी कलुषता बढ़ने लगेगी तब यह स्पष्ट हो जाएगा कि आप अहंकारी हैं ।
प्रश्न : अहंकार आपको कैसे पीछे धकेलता है ? निजी जिंदगी में, समाज में और परिवार में ?
उत्तर : जहां आपका मान-सम्मान नहीं होगा, आप वहाँ नहीं जाएंगे और न वहाँ जाकर अपने आपको सहज महसूस करेंगे । ऐसे स्थानों, आयोजनों में आप अपना प्रभाव छोड़ने की जिद में, अनेकों लोगों को बुरा बना लेंगे । आपके व्यवहार को अनेकों लोग देख रहे होंगे, इनमें ऐसे भी अनेकों लोग होंगे, जिन्हें आप पहचानते तक नहीं, आप अनायास ही उन्हें अपने से दूर कर लेंगे ।
असल में यह सम्पूर्ण समाज एक ऐसी पारदर्शी व्यवस्था है, जहां आपसे कुछ छुपा नहीं है ! आप जो हैं, जैसे हैं, जो सोचते हैं, जैसा व्यवहार करते हैं, सब समाज और अपने लोग सभी बहुत गहराई से देख-समझ रहे होते हैं । उनमें से कुछ लोग आपसे कह देंगे, कुछ आपको अहसास करवा देंगे, किन्तु बहुत बड़ा वर्ग ऐसा होगा, जो आपसे कुछ नहीं कहेगा और न आपको कोई संकेत देगा, केवल आपके प्रति धारणा बना लेगा । और आपके प्रति बनी हुई धारणा ही आपको समाज में, व्यवस्था में आगे-पीछे करने में महत्वपूर्ण कारण बनती है । जैसी आपके प्रति लोगों की धारणा बनेगी, लोग वैसे ही आपको लेंगे । आपको अपने लोग, जो शायद आपको समझते भी होंगे, शायद आपसे प्रेम भी करते होंगे, आपको बढ़ाना भी चाहेंगे तब भी, आप समाज द्वारा तिरिष्कृत किए जाओगे, अगर किसी कारण से आपको व्यवस्था में आपको पद भी मिल गया तो आप लोगों के हृदयों में स्थान नहीं बना सकोगे और न ही स्वयं उस पद और शक्ति का अपने जीवन में सदुपयोग कर सकोगे ।
प्रश्न : अहंकार कैसे छोड़ें ? क्या क्या उपाय करें कि इससे मुक्त हुआ जाए ?
उत्तर : सर्वप्रथम अपने जीवन में अध्यात्म को स्थान दें, अधिकतम मौन करने की वृति बनाएं, यदि आपका बोलने का स्वभाव है तो कर्ण प्रिय एवं हृदय प्रिय वचन बोलें, ऐसा बोलें जिससे किसी का भला हो ! अपने जीवन में- अहंकारी, बड़बोले, ईर्ष्यालु और पीठ पीछे किसी की बुराई करने वालों को बिल्कुल स्थान न दें, बल्कि तुरंत हटा दें, दूरी बना लें । अहिंसा और सत्य की अवधारणा पर चलें । बड़ों का सम्मान करें, कमजोर लोगों की सहायता करें, जरूरतमदों को यथासंभव दान करें ।
अहंकारी स्वभाव के लोगों के जीवन में अहंकार के कारण हुए नुकसान या उसकी पराजय की कहानियाँ सुनें या पढ़ें । अपने किसी की मृत्यु हो जाए तो उसकी शवयात्रा में जरूर जाएं । अपने मन की जिज्ञासाएं एवं प्रश्न किसी और से पूछने की बजाय अपने आपसे प्रश्न करें, और हल न मिलने तक उस प्रश्न को अपने जीवन में खड़ा रखें । दिन में कुछ समय में एकांत के लिए जरूर निकालें । किसी भी प्रकार के नशे से बचें । बहुत बड़ी बड़ी योजनाएं बनाने से बचें । जैसा आपको अपने लिए किसी का व्यवहार पसंद है, वैसा ही सामने वाले से व्यवहार करें । अपने जीवन में अध्यात्म, करुणा, प्रेम और वात्सल्य भाव को अधिकतम स्थान दें ।
प्रश्न : सुना है, अहंकार को भी अपनी शक्ति बनाया जा सकता है, वह कैसे ?
उत्तर : आपकी सकारात्मक महत्वाकांक्षाओं के प्रति आपकी अहंकार रूपी सोच को अर्थात अपने भावों को, अपने जीवन के संकल्प बनाओ, क्योंकि हर प्राणी, उस परमपिता का अंश है, सभी के भीतर ईश्वर ने अच्छाई और बुराई दोनों भावों का अंश दिया है, आपके सभी भाव अच्छे हैं, मात्र अहंकार को छोड़कर, अतः आप अपने अहंकार को ही अपनी शक्ति बना सकोगे ! इसके लिए आपको यह समझना पड़ेगा ? कि आपको यदि अहंकार पनपा है, आपके भीतर अपनी कीर्ति और पद के लिए, तो इसका मतलब है आप स्वाभिमानी हैं ! और यही आपके स्वाभिमान का गुण आपको, आपके अहंकार को आपके शुद्ध संकल्पों में परिवर्तित करने के लिए पर्याप्त है ।