आपका स्वास्थ्य सही हो, देखने में हस्ट-पुष्ट तंदरुस्त हों, अच्छे घर परिवार में जन्म लिया है, खूब शिक्षित भी को, परिवार भी खूब सम्पन्न है, अच्छी बोली भाषा और सुंदर नैन नक्श है, किन्तु एक छोटा सा दोष है, आप ईर्ष्यालु हैं, दूसरे आपसे कैसे अच्छे हो सकते हैं, इसलिए आप निंदा भी करते हैं, असल में ईर्ष्या और निंदा एक ही मर्ज के दुष्परिणाम हैं ।
असल में इन सभी बातों का अहसास जब होता है, जब आपको लोग उस रूप में नहीं लेते जिसके आप पात्र हैं, या जिसमें आप अपने आपको पात्र समझते हैं । आप केवल इसी बात को देखते हैं कि लोग आपको सही से नहीं ले रहे है, आपको समझते नहीं। आपकी समाज में, परिवार में, मित्रों में मान्यता ऐसी होनी चाहिए, लेकिन लोग आपकी अपेक्षा के अनुरूप आपको मान्यता नहीं दे रहे हैं । आपकी बात का किसी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, आपकी अपेक्षा के अनुरूप समाज में छवि नहीं बन पा रही ? इसके अनेकों कारण हो सकते हैं, किन्तु उनमें से प्रमुख कारण है, आपके व्यक्तित्व में बैठा किसी की ईर्ष्या करने एवं परनिंदा करने के दोष ! यदि यह दो प्रमुख दोष हैं, तो आप चाहे जो हों, आपको अपयश मिलेगा ही, आपको न समुचित सम्मान मिल सकेगा और न अपेक्षा अनुसार आपकी छवि समाज में बन सकेगी । फिर आप चाहे किसी बड़े पद पर बैठे हों, आप कितनी ही महत्वपूर्ण भूमिका में हों अथवा आप कितने भी धनाढ्य क्यों न हों आपको अंततोगत्वा अपयश तो मिलेगा ही । आपको आपकी अपेक्षा एवं अभिलाषा के अनुरूप समाज में महत्व नहीं मिलेगा ।
ईर्ष्या का परिचय : पहला परिचय तो यही है, कि आपको लगेगा ही नहीं कि आप ईर्ष्यालु हैं, आपको लगेगा आप तो सत्य कह रहे हैं । दूसरा और प्रमुख परिचय आपको किसी भी सफलता, समृद्धि, ख्याति और उपलब्धि अच्छी ही नहीं लगेगी, सामने वाला पात्र ही नहीं ऐसा आपको लगेगा । तीसरा आप सदैव असन्तुष्ट रहेंगे । चौथा आपको ईर्ष्यालुओं की संगति अच्छी लगने लगेगी । पाँचवा आपके मन में व्याकुलता और क्रोध हावी रहेगा । यह प्रमुख पाँच परिचय आपको संकेत दे सकते हैं, कि आप ईर्ष्यालु हैं, हो रहे हैं अथवा सामने वाले किसी भी व्यक्ति में यह सब देखकर आप अंदाजा लगा सकते हैं कि वह किस स्तर का ईर्ष्यालु है । मन में खिन्नता बढ़ने लगे, किसी एक स्थान अथवा एक विषय में अधिक देर तक मन न लगे, स्थिरता न रहे, एकाग्रता का आभाव होने लगे । किसी की बात अच्छी न लगे, किसी से मिलने को ही मन न करे, तो समझ जाओ आप ईर्ष्या से ग्रसित हैं । सदैव अपनी बात, अपने विचार, अपना स्वभाव, अपने निर्णय, अपने सुझाव, अपने कार्य, अपने उद्देश्य ही आपको सर्वोत्तम लगने लगे । आपमे सहनशीलता की कमी होने लगे, आप अधिक देर तक किसी की बात को नहीं सुन सकते हों तो समझ जाइए आप ईर्ष्या से ग्रसित हैं ।
निंदा : ईर्ष्या की अग्रिम सीढ़ी निंदा है या फिर यह कह सकते हैं, कि आपके मन में किसी की निंदा करने से पूर्व ईर्ष्या के भाव आते हैं । ईर्ष्या के कारण, अपनी छवि की असुरक्षा के कारण, समाज में अपने कद को बढ़ाने एवं बनाए रखने के प्रबल मन से आप दूसरों की निंदा करने लगते हैं । प्रारंभ में, यह आपको अपनी स्वाभाविक प्रक्रिया लगती है, किन्तु जब यह आपका स्वभाव बन जाती है, तो यह आपके व्यक्तित्व पर हावी होने लगती है, हालांकि तब तक बहुत देर हो चुकी होती है । निंदा करने का स्वभाव आपके व्यक्तित्व में इतना समाहित हो जाता है, कि वह आपको सहज लगने लगता है । प्रारंभ में लोग इसे सुनते हैं, फिर आपकी नीयत को समझते हुए प्रतिक्रिया देने लगते हैं, किन्तु जब इतने पर भी बात न बने तो समझ जाओ कि बात अब बढ़ गई है ।
ईर्ष्या और निंदा एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, जब आपके मन में ईर्ष्या पनपने लगती है, तभी से निंदा का बीजारोपण आपके मन में हो जाता है । आपके मन में ईर्ष्या जब आने लगेगी तब आपको पता नहीं चलेगा, किन्तु जब वह आपके मन मस्तिष्क पर छाने लगती यही तब आपको आपसे दूसरों के रिएक्शन से समझ आने लगता है । समाज के लोग आपके प्रति धारणा बदलने लग जाते हैं । इसमें अगर निंदा करने के दुर्गुण का यदि सम्मिश्रण हो जाए तो इसकी कुरूपता आपके व्यक्तित्व को कुरूप नहीं, कोढ़ी बना देती है । क्योंकि यह दोनों दुर्गुण मिकलर आपके सर्वनाश का आधार तो बनेंगे ही, किन्तु उससे पहले यह आपको समाज से अलग करेंगे, फिर परिवार से, आपका पद और संपत्ति सब एक-एक जाने लगेंगे तब भी शायद ही इन दुर्गुणों से ग्रसित व्यक्ति सुधरने की बजाय और गर्त में डलता चला जाता है । क्योंकि उसके मन में तो यह वहम है कि वही सर्वोत्तम है ।
यह आपकी मूल प्रकृति, आपका मूल स्वभाव हो सकता है, किसी-किसी को तो यह वंशावली से ही मिलता है, कुछ लोगों में प्रारंभिक संस्कारों एवं वातावरण से आते हैं और बहुत से लोग अपनी अज्ञानता वश समाज के कुछ लोगों की देखा-देख अपने आप में विकसित कर लेते हैं । हाँ ! कुछ अहंकारी तो जिंदगी भर यह समझ ही नहीं पाते कि वह अहंकार रूपी दोष से बुरी तरह प्रभावित हैं । वह उनके व्यक्तित्व का तो नाश कर ही रहे हैं, साथ ही अपने आप से, अपने अपनों से, अपने दोस्तों से, समाज से उसे दूर कर रहे हैं, वह अपनी स्वाभाविक जिंदगी नहीं जी पा रहा । उसमें लाख अच्छाई होने पर भी उसे लोग पूछ नहीं रहे हैं, अर्थात निंदक और ईर्ष्यालु प्राणी से सफलता और उसके अपने लोग दोनों दूर हो जाते हैं ।
मित्रो ! ईर्ष्या और निंदा जितना आपको बाहर से तोड़ते हैं उससे कहीं आपको भीतर से तोड़ देते हैं । जब अंदर-बाहर की मार के थपेड़े आपको तोड़ने लगते हैं, तब आपको बिलबिलाहट प्रारंभ होती है । आपको बहुत सारे आपके द्वारा किए गए अच्छे काम और आपको अच्छी आदतें याद आने लगती हैं । आप अपने आपको एवं अपने अपनों को आत्म पीड़ित दिखाने लगते हैं, किन्तु तब तक देर हो चुकी होती है । क्योंकि तब तक लोग आपके बारे में धारणा बना चुके होते हैं, उसे आप एक दिन में तोड़ नहीं सकते और लोगों में मन में इतनी जल्दी वो जगह ही बना सकते हैं । इसलिए व्यक्ति आत्मग्लानि, शोक और अशान्ति से ग्रसित होने लगता है । यह ईर्ष्या और निंदा का दंश उसे लील चुका है, इस भयवाह दृश्य को देखकर व्यक्ति सहम जाता है । किन्तु ऐसा भी उन विलक्षण लोगों के साथ होता है, जिनके ऊपर प्रभु कृपा होती है, क्योंकि प्रभु उन्हें ही सद्बुद्धि देंगे, तो उन्हें अहसास होने लगता है, और अहसास होना ही सुधार होने की प्रथम पायदान है । किन्तु दुर्भाग्य कुछ लोग जीवन के उत्तरार्ध तक नहीं समझ पाते, कि वे किस व्याधि से ग्रसित हैं, कितने ग्रसित हैं, और क्यों ग्रसित हैं ।
आध्यात्मिक जागृति ही आपको इन दुर्गुणों से छुटकारा प्रदान करवा सकते हैं । आपके मन में क्षमा, करुणा, दैन्यता का प्रादुर्भाव आध्यात्मिक जागरण से ही आएगा । अपने से बड़ों का सम्मान और आदर, अपने से छोटों के प्रति मधुरता, हृदय की विशालता विकसित हो सकेगी एवं अपने साथ वालों एवं समाज के हर व्यक्ति, सृष्टि के हर प्राणी के प्रति संवेदना, दयालुता आध्यात्मिकता जागृति से ही आपके मन मंदिर में पनप सकेगी । इन विकारों के समूल नाश के लिए आध्यात्मिकता से जुड़ें । आप छोटे-छोटे अन्य प्रयासों एवं अन्य विकल्पों का भी सहारा ले सकते हैं, जैसे अपने व्यक्तित्व में, अपने स्वभाव में, अपने विचारों में, दूसरों के प्रति मन और हृदय की विशालता बढ़ाएं, आप लोगों को सुनने का गुण विकसित करें, कम बोलना, शांत रहना, अपने कर्मों के आधार पर अपनी सफलता की कामना करना ।
लेखक
(प्रमोद कुमार)
आध्यात्मिक प्रवक्ता
नई दिल्ली, भारत 19.10.2024